आज भारत में बदलते समय के साथ हमारा आहार भी बदल रहा है। बाज़ार में कई प्रकार के व्यंजन एवं पेय पदार्थ हमें अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
चाहे बच्चे हो, युवा हो या वयस्क सब लोग भिन्न भिन्न प्रकार के व्यंजन का लुत्फ़ उठा रहे है पर सिर्फ़, जीभ के चलते हम अपने शरीर को अंदर से कितना खोखला कर रहे है। यह एक चिंतनीय विषय है।
अगर वर्तमान समय में देखा जाये तो हमारे आस पास में अब पहले के तुलना में कई अधिक फ़ास्ट फ़ूड विक्रेता, फ़ूड स्टाल और रेस्तराँ खुल चुके है जहां हमें इटालियन से चाइनीज़ और मेक्सिकन से लेकर यूरोपियन ख़ान पान बहुत आराम से उपलब्ध हो जाता है और इन जगहों पर भीड़ हमे यह दर्शाता है की वाक़ई में अब हमारी ख़रीदने की क्षमता बहुत बढ़ चुकी हैं। बड़ी बड़ी पाश्चात्य कंपनियों का छोटे क़स्बो तक आउटलेट खुलना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। व्यापार के क्षेत्र में यह एक प्रशंसनीय पहल है पर स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह चिंतनीय है।
आज आमजनों को कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स, फैट की जानकारी, या बिलकुल नहीं है या बहुत कम है, पर हमारे शरीर को इसकी जानकारी भरपूर है और अपने पाचनतंत्र के लिए वो इनकी भूमिका भी निर्धारित करता है। लोगों को यह जान कर आश्चर्य होगा की हमारे दादा- परदादा हमसे बेहतर भोजन का सेवन करते थे क्योंकी उन्हें इसका चुनाव बेहतर तरीक़े से करना आता था। जिसमे भरपूर मात्रा में सभी पोषक तत्व मिल जाते थे और यह एक परंपरागत रूप में सदियों से चला आ रहा है जैसे की जलवायु के अनुकूल फल और सब्ज़ी खाना, मोटे अनाज और पेय पदार्थ। लेकिन हम लोग स्वयं को मॉडर्न बोलने के लिये पुरानी चीज़ो को वरीयता नहीं देते हैं।
स्वपाकी ना बनने के लिए और बाहरी वस्तु पर निर्भर रहने के लिए, हम अपने पास समय ना होने का हवाला देते है। अगर गौर करे तो चाऊमीन, मोमो, पैटिज़, पास्ता जैसे खाद्य पदार्थ का ग्लाइसैमिक इंडेक्स बहुत ज़्यादा होता है साफ़ शब्दों में ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) एक मापन प्रणाली है, जिसके द्वारा यह पता किया जा सकता है कि भोजन में कार्बोहाइड्रेट कितनी जल्दी ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता हैं और रक्त प्रवाह में प्रवेश करता हैं। हम जो भी खाए शरीर उसे ऊर्जा के लिये ग्लूकोज़ में बदल देता है। (जी.आई)70 या अधिक वाले खाद्य पदार्थ तेजी से पचते और अवशोषित होते हैं, जिससे खून में शुगर लेवल काफी तेजी से बढ़ता है। इन खाद्य पदार्थों में सफेद ब्रेड, सफेद चावल और मीठे पेय शामिल हैं। इसके अलावां केक, ब्रेड, बिस्कुट, कद्दू, आलू, तरबूज, खजूर, एनर्जी ड्रिंक,पिज़्ज़ा, फास्ट फूड, चीनी, गुड़, चॉकलेट आदि का जी.आई. लेवल भी बहुत अधिक होता है।
जिन खाद्य पदार्थों में ग्लाइसेमिक इंडेक्स सामग्री 55 से भी कम होती है, ऐसी सामग्री बहुत धीरे-धीरे पचती है और अवशोषित होने पर शरीर में शुगर लेवल भी काफी धीरे-धीरे बढ़ाती है। इसमें अधिकांश सब्जियां, फल, नट आदि शामिल हैं। लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स की सूची में जो, ओट्स, किनोआ, दलिया, मूंग की दाल, अरहर की दाल, मसूर की दाल, लोबिया, सोयाबीन, छोले, राजमा, हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, मेथी, चौलाई, बैंगन, हरी बींस, गोभी, खीरा, टमाटर, ब्रोकली, खुबानी, सेब, मौसमी, संतरा, कीवी, आलूबुखारा, नाशपाती, बेरी, दूध एवं दूध से बनी चीजें शामिल हैं। इसके अलावा दही एवं छाछ, सब्जियों का सूप, मूंगफली, अलसी के बीज, बादाम, अखरोट, कद्दू के बीज आदि भी लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स की लिस्ट में शामिल हैं।
"अगर हम बात करें हम सब के पसंदीदा" पैकेज्ड फ़ूड जैसे की आलू चिप्स, वेफ़र्स, नमकीन, चनाचूर की बात करे तो इनमें से अधिकतर पदार्थ पाम आयल यानी ताड़ के पेड़ के बीजों से बने तेल का प्रयोग करते है जिसमे सैचुरेटेड फैट और ट्राइग्लिसराइड्स अधिक मात्रा में पाया जाता है। सैचुरेटेड फैट की मात्रा एलडीएल (खराब) कोलेस्ट्रॉल के लेवल को बढ़ाने में मदद करता है. ऐसी स्थिति में दिल संबंधी बीमारी होने का खतरा और अधिक बढ़ जाता है. सैचुरेटेड फैट होने के कारण हमारे लिवर को इसे पचाने में अधिक जोर देना होता है और कई बार यह फैटी लिवर का कारण बन जाता है।
सैचुरेटेड फैट में मौजूद कुछ तत्व बिना किसी रुकावट के सीधे रक्त को गाढ़ा करने के साथ, थक्का जमाने के लिए जिम्मेदार होते हैं, जिस वजह से नसों में ब्लॉकेज की समस्या उत्पन्न होती है। हमारे देश में पाम आयल का प्राकृतिक उत्पादन बहुत कम होता है पर भारत इसका सबसे बड़ा निर्यातक है। सिर्फ़ पिछले वर्ष हम 90 लाख टन से अधिक आयात कर चुके है और आश्चर्य की बात यह है हम अपने घर के ख़ान पान में इसे बिलकुल भी प्रयोग नहीं करते है और इससे अनभिज्ञ हैं। इसी तरह पिज़्ज़ा और मोमो में प्रयोग होने वाला मेयोनीज़ में फैटी एसिड बहुत ज़्यादा होता है जो की वजन बढ़ाने में बहुत सहायक होता है और आर्थराइटिस (जोड़ो का दर्द) का कारण बनता है।
आप लोगो को जानकर हैरानी होगी की हम लोग जो होटल पर बड़े चाव से बटर मँगवाते है उसमे से कई बार हमे बटर के नाम पर मार्ज़रीन मिलता है जो की सस्ते वनस्पति तेल से बनता है। यही सब कारण जो आज रक्त चाप, मधुमेह, किडनी स्टोन एक आम बीमारी बन गई है।
हमे इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की हमारे जलवायु में पैदा होने वाले तेल जैसे सरसों, निरियल व अन्य का प्रयोग करे और प्रोटीन युक्त सात्विक भोजन का चयन करे। जो कम समय में पच जाये और यदि कभीं बाहरी वस्तु खाये भी तो वह सीमित मात्रा में ले क्यों की मेरा मानना है की “हम वही बनते है जिसका हम सेवन करते है“
लेखक - वरुण उपाध्याय (फ़ूड एंड डेरी टेक्नॉलजी)
बिल्कुल सत्य,,,बात
ReplyDeleteखुद के हेल्थ से खिलवाड़ कर रहे है।हम लोग।।
धन्यवाद आपका इस ओर ध्यान आकर्षित करवाने के लिए,,,
True
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