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एक झटके में ग्रामीणों की दशकों पुरानी परंपरा हुई खत्म

मिर्ज़ामुराद में दशकों पुरानी परंपरा टूटीं, पारंपरिक स्थान पर नहीं विराज सके श्रीराम, लखन, हनुमान 
पुलिस के फैसले से ग्रामीणों में नाराजगी- 


मिर्ज़ामुराद। इस वर्ष विजयदशमी और दुर्गा पूजा के पावन अवसर पर मिर्ज़ामुराद के प्राचीन शिव मंदिर बंगलापर दशकों पुरानी परंपराओं पर अचानक विराम लग गया। राम, लक्ष्मण और हनुमान जी का पारंपरिक स्वरूप, जो हर वर्ष विजयदशमी के दिन बंगालचट्टी शिव मंदिर के नजदीक बने परम्परिक चबूतरे पर विराजमान होता था, इस बार अपने स्थान पर नहीं बैठाया जा सका। पुलिस के एक फैसले ने इस धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन को रोक दिया, जिससे स्थानीय लोगों में गहरा आक्रोश फैल गया है। 


दुर्गा पूजा पंडाल विवाद से शुरू हुआ मामला- 

प्राचीन शिव मंदिर के पास हर वर्ष दुर्गा पूजा का आयोजन होता था, जिसे लेकर क्षेत्र के लोग उत्साहित रहते थे। इस बार पूजा पंडाल लगाने के लिए दो पक्षो ने पुलिस से अनुमति मांगी, और यहीं से विवाद की शुरुआत हुई। पुलिस को यह बात आपत्तिजनक लगी कि एक ही पूजा पंडाल के लिए दो लोगों ने अनुमति मांगी। बिना किसी ठोस समाधान या ठोस बातचीत के, पुलिस ने इस स्थान को विवादित घोषित कर दिया और पंडाल लगाने तथा पूजा करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया। और पारंपरिक स्थान पर पीएसी बल लगा दी गई। वही दुसरे पक्ष को पुलिस ने 100 मी0 दूर दुर्गा पूजा लगाने का परमिशन दे दिया। इस फैसले के चपेट मे विजयदशमी का मेला भी आ गया। विजयदशमी पर भगवान राम, लक्ष्मण और हनुमान जी का स्वरूप भी मंदिर के पारंपरिक मंच पर विराजमान नहीं हो सका। दशकों से इस चबूतरे/मंच पर भगवान के इन स्वरूपों को बैठाकर ग्रामीण और आसपास के लोग भक्ति भाव से दर्शन करते थे। लेकिन पुलिस के इस कदम ने उस परंपरा को भी समाप्त कर दिया, जो स्थानीय धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा थी।



मंदिर और पूजा स्थल का ऐतिहासिक महत्व- 

मिर्ज़ामुराद का बंगलापर स्थित यह प्राचीन शिव मंदिर और वहां लगने वाला दुर्गा पूजा पंडाल व विजय दशमी का मेला दशकों से स्थानीय धार्मिक जीवन का केंद्र रहा है। यहां हर वर्ष हजारों श्रद्धालु राम, लक्ष्मण और हनुमान जी के पारंपरिक स्वरूप के दर्शन करने आते थे। इस मंच का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी गहरा है, क्योंकि यह आयोजन विजयदशमी के पर्व से जुड़ा हुआ है, जो पूरे देश में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। 

ग्रामीणों का कहना है कि मंदिर के पास पंडाल लगाने की परंपरा ने पूरे क्षेत्र को एक धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बना दिया था। यहां आने वाले श्रद्धालु न सिर्फ पूजा-अर्चना के लिए आते थे, बल्कि यह आयोजन उनके लिए एक सामाजिक मेलजोल का अवसर भी होता था। 


 वही इस बार विजयदशमी का मेला राष्ट्रीय राजमार्ग 19 के सर्विस लेन पर लगाया गया जहां पूर्व की भांति लोगों की रुचि मेले में नहीं देखने को मिली, फल स्वरुप मेले में लोगों की संख्या कम नजर आयी।



~टीम दैनिक दर्पण



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